Chaitra Navratri 2022: जानिए कब शुरू हो रही है Chaitra Navratri 2022, पढ़िए इसका खास महत्व
चैत्र नवरात्र का व्रत इस बार 2 अप्रैल 2022 शनिवार से शुरू हो रहा है, जो 11 अप्रैल को समाप्त होगा।

जानिए चैत्र नवरात्र का व्रत।
Digital Desk: माँ दुर्गा (Maa Durga) नौ रूपों को समर्पित नवरात्रि के व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो सालभर में 4 बार नवरात्रि व्रत रखे जाते हैं, दो बार गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) और एक चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) और एक बार शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri)। फिलहाल अभी फाल्गुन का महीना चल रहा है, इसके बाद चैत्र का महीना शुरू होगा। ऐसे में सभी को यह जानने की उत्सुकता रहती है कि, आखिर चैत्र नवरात्रि कब से शुरू होगी। चैत्र नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है। इस बार चैत्र नवरात्रि का व्रत 2 अप्रैल 2022 को शनिवार के दिन से शुरू हो रहे हैं और 11 अप्रैल 2022 को सोमवार के दिन समाप्त होगा। यहां जानिए नवरात्रि से जुड़ी खास बातों के बारे में।
शुभ मुहूर्त:
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल, शुक्रवार को सुबह 11 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और 02 अप्रैल, शनिवार को सुबह 11 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद 9 दिन तक कलश का नियमित पूजन होता है। इस बार कलश स्थापना का शुभ समय 02 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक होगा।
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माता रानी का आगमन:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल नवरात्रि के दिन माँ किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती हैं। वहीं लौटते समय मातारानी का वाहन अलग होता होगा। चैत्र नवरात्रि में माँ घोड़े पर सवार होकर आएंगी। अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार या फिर सोमवार से होती तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं।
नवरात्रि के 9 दिनों में मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है। पहले दिन माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठवां कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां मां महागौरी और नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना (NAVRATRI POOJA TIPS) के लिए सबसे पहले माता दुर्गा की तस्वीर के सामने अखंड ज्योति जला दें। इसके बाद एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें, उसमें जौ के बीच डालें। एक कलश को अच्छे से साफ करके उस पर कलावा बांध दीजिए। स्वास्तिक बनाएं और कलश में थोड़ा गंगा जल डालकर पानी भरें। इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें। फिर कलश के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और कलश को बंद करके इसके ढक्कन के ऊपर अनाज भरें। अब एक जटा वाले नारियल को लाल चुनरी से लपेटकर अनाज भरे ढक्कन के ऊपर रखें। इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें। इसके बाद सभी देवी और देवता का आवाह्न करें और माता के समक्ष नौ दिनों की पूजा और व्रत का संकल्प लेकर पूजा विधि प्रारंभ करें।