Gudi Padwa 2022: जानिए महाराष्ट्र में मनाए जाने खास पर्व गुड़ी पड़वा के बारे में

गुड़ी पड़वा का पर्व महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र में खास मनाया जाता है।

 
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गुड़ी पड़वा 2022 के बारे में खास बात।

मिर्ज़ापुर, Digital Desk: गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) का पर्व खासतौर पर महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश की तरफ जोर शोर से मनाया जाता है। इसे उगादी, युगादी, छेती चांद जैसे नामों से भी बुलाया जाता है। हिंदू कैलेंडर (Hindu Calendar) के हिसाब से गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की शुरुआत होती है और इसी दिन से हिंदू नववर्ष भी प्रारंभ होता है। इस बार गुड़ी पड़वा का पर्व 2 अप्रैल को शनिवार के दिन पड़ रहा है। गुड़ी पड़वा को लेकर और भी कई तरह की बातें प्रचलित हैं। ऐसा बोला जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था और इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी। मान्यता यह भी है कि त्रेतायुग में नारायण अवतार प्रभु श्रीराम ने गुड़ी पड़वा के दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया था।

शुभ मुहूर्त:

प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल शुक्रवार को दिन में 11:53 मिनट से शुरू होकर और अगले दिन 02 अप्रैल शनिवार को 11:58 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के हिसाब से इस पर्व को 02 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं। इन दोनों ही योग को काफी शुभ फलदायी माना गया है।

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खास महत्व:

• ‘गुड़ी’ शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान आदि करने के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। माना जाता है कि इससे वहां की नकारात्मकता दूर होती है और घर में खुशहाली बनी रहती है।

• महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन एक खास व्यंजन पूरन पोली बनाई जाती है। इसी पावन पर्व पर यहां लोग आम का सेवन शुरू करते हैं। कुछ स्थानों पर गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्तियां खाने का भी चलन है।

• इस पर्व पर सूर्य की उपासना का भी चलन है। लोग सूर्य उपासना करके उनसे सुख-समृद्धि एवं आरोग्य की कामना करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएं 9 गज लंबी साड़ी पहनती हैं, तो वहीं पुरुष भी लाल या केसरिया पगड़ी के साथ कुर्ता-धोती या पैजामा पहनते हैं।

• यह भी मान्यता है कि वीर मराठा छत्रपति शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया था। इसीलिए यह त्यौहार और भी खास हो जाता है।