Vijaya Ekadashi 2022: किस दिन मनाई जाएगी विजया एकादशी किस दिन रखा जाएगा व्रत, पढ़ें पूरी खबर
विजया एकादशी का त्यौहार हर महीने में दो बार आता है, यह सभी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं।

उत्तर प्रदेश, Digital Desk: शास्त्रों में एकादशी के व्रत (Ekadashi Vrat) को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। हर माह में दो एकादशी के व्रत होते हैं, सभी एकादशी श्री हरि भगवान विष्णु को समर्पित हैं और सभी के नाम अलग अलग होते हैं। फाल्गुन माह (Phalguna Month) की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) के नाम से लोग जानते है। कहा जाता है कि, विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पापों का अंत होता है, साथ ही ये एकादशी शत्रुओं पर विजय दिलाने वाली और हर क्षेत्र में सफलता दिलाती है। इस बार एकादशी तिथि दो दिन पड़ रही है, इस कारण भक्तों में व्रत की तिथि को लेकर संशय की स्थिति है।
विजया एकादशी का व्रत:
एकादशी तिथि की शुरुआत 26 फरवरी 2022, शनिवार के दिन सुबह 10:39 मिनट से होगी और तिथि का समापन 27 फरवरी, रविवार सुबह 08:12 मिनट को होगा। उदया तिथि के हिसाब से विजया एकादशी का व्रत 27 फरवरी को रखा जाएगा। एकादशी तिथि समाप्त होने के बावजूद भी तिथि का प्रभाव पूरे दिन रहेगा, इसलिए आप ये व्रत 27 फरवरी को ही रखिए। व्रत पारण के लिए शुभ समय 28 फरवरी सोमवार को सुबह 06:48 से 09:06 बजे तक का है।
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दो शुभ योग:
इस बार विजया एकादशी पर दो शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग और त्रिपुष्कर योग भी बन रहे है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 27 फरवरी को सुबह 08:49 बजे से लग रहा है, जो अगले दिन सुबह 06:48 बजे तक रहेगा। वहीं त्रिपुष्कर योग 27 फरवरी की सुबह 08:49 बजे से प्रारंभ हो रहा है। ये 28 फरवरी को सुबह 05:42 बजे तक मान्य होगा। मान्यता है कि, सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कोई भी काम सफल जरूर होता है।
ऐसे रखें एकादशी का व्रत:
यह व्रत काफी कठिन माना जाता है। क्योंकि इसके नियम दशमी की शाम को सूर्यास्त के बाद से लागू हो जाते हैं और द्वादशी की (EKADASHI VRAT) सुबह व्रत पारण तक मान्य होते है। अगर आप ये व्रत रखना चाहते हैं, तो 26 फरवरी की शाम को सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन (VISHNU) करें, इसके बाद से द्वादशी के दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। फिर एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान से निवृत्त होकर भगवान के सामने व्रत का संकल्प करें। दिन भर व्रत रखिए, भगवान नारायण को पीला चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, तुलसी, भोग, कपड़ा, दक्षिणा आदि अर्पित करें। व्रत कथा पढ़ें या सुनें और अंत में आरती करें। संभव हो तो व्रत निर्जल रखें, अगर न रह सकें तो फलाहार और जल पर रह सकते हैं। एकादशी की रात में जागरण करके भगवान के भजन का ध्यान करें। द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे यथा सामर्थ्य दान कर दक्षिणा दें। इसके बाद अपने व्रत का पारण करें।