Dol Purnima in 2023 : बंगाल का दोल पूर्णिमा उत्सव होली के रंगों से जुड़ा विशेष पर्व

Dol Jatra or Dol Purnima फाल्गुन माह की पूर्णिमा को दोल पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है.
 
bengali holi
दोल उत्सव से पूर्व होलिका दहन करने का विधान भी है, जिसे बंगाल में नेड़ा-पोड़ा नाम से पुकारा जाता है

 

Astro, Digital Desk: हिंदू पंचांग अनुसार पूर्णिमा का समय एक विशेष समय होता है. भारत वर्ष में इस दिन को विशेष रिति रिवाजों के अनुरुप मनाते हैं. एक विशेष रुप से इस दिन रंगों का उत्सव मनाया जाता है. रंगों का ये उत्सव जब हम बंगाल की ओर जाते हैं तो वहां उस स्थान पर इस रंग का उत्सव दोल उत्सव या डोल उत्सव के रुप में अलग ही रंग में दिखाई देता है.

 

डोल पूर्णिमा उत्सव 
डोल पूर्णिमा को डोल यात्रा के रुप में भी जाना जाता है. इस दिन बंगाल में होली का स्वरुप इस यात्रा के रुप में मनाते हैं जहां लोक संस्कृति एवं संगीत की अलग थाप सुनाई पड़ती है. कहा जाता है की यदि बंगाल को एक अलग रंग में देखन अहो तो दोल पूर्णिमा के समय यहां भ्रमण जरूर किया जाए. यह समय बंगाल में होने वाले लोक उत्सवों की समृद्ध परंपरा को देखने का विशेष समय होता है.

 

 

डोल पूर्णिमा का संबंध रविंद्रनाथ टैगोर के साथ भी रहा है. बंगाल में डोल या दोल पूर्णिमा उत्सव की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन जब रवींद्रनाथ टैगोर जी ने शांतिनिकेतन में जब इस समय दिन को मनाया तो उसका वहीं रुप आज भी उसी तरह से मनाया जाने लगा है. इस दिन को शांतिनिकेतन में बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है. गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे शान्ति निकेतन में वसन्तोत्सव का नाम कहा और धूमधाम से यह दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा जो आज भी वैसे ही रंगों में रंगा दिखाई देता है. देश विदेश से लोग इस स्थान पर आकर इस उत्सव में शामिल होते हैं और रंगों में डूब कर प्रेम एवं उत्साह में डूबे दिखाई देते हैं.


दोल उत्सव के दिन पर बंगाल में हर ओर गुलाल एवं सतरंगी रंगों की छटा देखते ही बनती है. दोल उत्सव से पूर्व होलिका दहन करने का विधान भी है, जिसे बंगाल में नेड़ा-पोड़ा नाम से पुकारा जाता है. कुछ स्थानों पर इस समय को चांचल के नाम से भी पुकारते हैं जिसमें लकड़ी, बांस, घास-फूस इत्यादि को एकत्रित करके होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है. 
 

 

दोल पूर्णिमा जात्रा 
दोल उत्सव के दिन कुछ रंगारंग कार्यक्रम संपन्न होते हैं, इसमें डोल यात्रा विशेष होती है. इस दिन लोग रंग बिरंगे वस्त्र पहनते हैं और फूलों के द्वारा खुद को सजाते हैं. उत्सव का आयोजन नृत्य एवं संगीत के साथ आरंभ होता है जो संपूर्ण दिन तक चलता रहता है. मीठे पकवानों एवं मिष्ठान द्वारा लोग एक दूसरे को दोल उत्सव की बधाई देते हैं. इस पर्व में राधा जी और कृष्ण जी की प्रतिमाओं को झूले में विराजमान करते हैं और भक्त इसके चारों ओर नृत्‍य करते हैं तथा झूला झुलाते चले जाते हैं. इस उत्सव के समय लोग एक दूसरे पर रंगों की बारीश करते चले जाते हैं 


 

(Disclaimer: प्रकाशित जानकारी सामान्य मान्यताओं और लेखक की निजी जानकारियों व अनुभवों पर आधारित है, Mirzapur Official News Channel इसकी पुष्टि नहीं करता है)