Holashtak 2023: 28 फरवरी से 7 मार्च तक रहेगा होलाष्टक, रुक जाएंगे सभी शुभ-मांगलिक कार्य

होलाष्टक में आखिर क्यों नहीं किए जाते हैं शुभ मांगलिक कार्यों क्यों हैं 
 
Holashtak 2023
इस वर्ष 28 फरवरी 2023 के दिन से होलाष्टक का आरंभ होगा, होलाष्टक की ये अवधि 7 मार्च 2023 तक रहेगी 


Astro, Digital Desk: होलाष्टक (Holashtak) वो आठ दिनों का समय है जब इन दिनों के दौरान विवाह, गृह प्रवेश एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं. इन आठ दिनों का समय किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए होता है बेहद कमजोर. ज्योतिष एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन किए जाने वाले कामों में नहीं मिल पाती है सफलता. 

इस वर्ष 28 फरवरी 2023 के दिन से होलाष्टक का आरंभ होगा. होलाष्टक की ये अवधि 7 मार्च 2023 तक रहेगी. होलाष्टक का आरंभ फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक का आरंभ होता है और फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन इस की समाप्ति होती है. 

होलाष्टक का पर नहीं किए जाते शुभ कार्य 
होली (Holi 2023) के त्यौहार के आने से आठ दिन पहले ही होलाष्टक का आरंभ होता है. होलाष्टक को उस समय के रुप में जाना जाता है जिसमें शुभ कामों को करने की मनाही होती है. इन दिनों को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है और इस समय पर पूजा (Puja) पाठ एवं मंत्र जाप इत्यादि कार्यों को किया जाना अनुकूल होता है.

लेकिन इस समय पर विवाह, सगाई, नामकरण, गृह प्रवेश इत्यादि जैसे कार्यों को कुछ समय के लिए रोक देने का निर्देश होता है. ज्योतिष अनुसार इन दिनों में ग्रहों की शक्ति काफी कमजोर होती है जिसके चलते शुभ कार्यों को टाल देना ही उचित होता है.

ग्रहों की शुभता न मिल पाने से कार्यों में मिलने वाली सफलता भी कमजोर हो जाती है, इस कारण से ज्योतिष अनुसार ये आठ दिन मांगलिक कार्यों के अनुकूल नहीं माने जाते हैं और इस समय पर इनको करना वर्जित माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र में इसे शुभ कार्यों के आयोजन हेतु मुहूर्त के लिए उपयोगी नहीं माना जाता है. 

इस कारण लगती है मांगलिक कार्यों पर रोक 
होलाष्टक के समय से संबंधित शुभ कार्यों के निषेध में पौराणिक कथाएं अपना विशेष आधार प्रस्तुत करती हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसका संबंध भगवान श्री विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद से रहा है.

मान्यताओं के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप की श्री विष्णु भगवान से अतिशत्रुता थी और वह स्वयं को भगवान के स्थान पर प्रस्तुत करता था. हिरण्यकश्यप का पुत्र था प्रह्लाद जो बचपन से ही श्री विष्णु के परम भक्त रहे और जब हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र के इस भक्ति का पता चलता है तो वह प्रह्लाद को ऎसा करने से रोकता है.

लगातार आठ दिनों तक हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दी जिससे की वह श्री विष्णु के नाम को भूल जाए किंतु जब प्रह्लाद अपनी भक्ति से नहीं हटा तो दैत्यराज ने अपनी बहन की सहायता से प्रह्लाद को मारने की कोशिश कि किंतु इस कार्य में होलिका जल कर भस्म हो जाती है और प्रह्लाद जीवित रहते हैं.

इन आठ दिनों में हिरण्यकश्यप द्वारा किए गए निंदनीय कृत्य के कारण ही इस समय को अच्छा नहीं माना जाता है और ये आठ दिन होलाष्टक कहलाते हैं जो होलिका दहन के साथ समाप्त होते हैं. 

 Disclaimer: प्रकाशित जानकारी सामान्य मान्यताओं और लेखक की निजी जानकारियों व अनुभवों पर आधारित है, Mirzapur Official News Channel इसकी पुष्टि नहीं करता है)