Holi Puja: देश भर में मचेगी होली की धूम, जानिए होली पूजन से जुड़ी मान्यताएं और परंपराएं

Holi Traditions and Beliefs आज रात होलिका दहन होगा जिसके बाद होली का आरंभ होगा. आईये जानतें हैं इस पर्व से संबंधित कुछ विशेष बातें
 
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Holi 2023: देश भर में होली से संबंधित कई परंपराओं का निर्वाह होता है, आइये जानते हैं इन सभी के बारे में


आस्था, Digital Desk: इस साल पूर्णिमा दो दिनों तक रहेगी. जो आज शाम 4 बजकर 18 मिनट से शुरू होगा और इसके साथ भद्रा दोष भी रहेगा. इस बार दो दिन होलिका दहन होने के कारण 8 तारीख को देश भर में धुलेंडी यानी रंगों वाली होली मनाई जाएगी. यानी देश के ज्यादातर राज्यों में होली जलने के 24 घंटे बाद ही रंग खेला जाएगा. देश भर में होली से संबंधित कई परंपराओं का निर्वाह होता है. आइये जानते हैं इन सभी के बारे में : - 

मान्यताओं के अनुसार कहते हैं कि होलिका पूजा से पहले भगवान नृसिंह को प्रह्लाद का ध्यान करना चाहिए और उन्हें प्रणाम करना चाहिए. चंदन, अक्षत और पुष्प सहित पूजन सामग्री अर्पित कर उन्हें प्रणाम करना चाहिए. इसके बाद होली की पूजा करें. पूजा करते समय मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए. इस दिन घर में बने सात तरह के पकवान और पूजन सामग्री से होलिका की पूजा की जाती है. भोग भी लगाया जाता है. इसके साथ ही होलिका दहन देखना भी शुभ माना जाता है. माना जाता है कि यह मन की नकारात्मकता को भी जलाता है और मन की ऊर्जा को बढ़ाता है.

होलिका दहन पर होली की राख का महत्व 
त्रेतायुग की शुरुआत में, जब प्रकृति की रक्षा के लिए पृथ्वी पर पहला यज्ञ किया गया था, तब भगवान विष्णु ने उसमें से थोड़ी सी राख को अपने सिर पर लगाया और उसे हवा में उड़ा दिया. इसके बाद ऋषियों ने भी ऐसा ही किया और ज्ञात होता है कि हवन की भस्म को शरीर पर लगाने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं. तब से यह परंपरा चली आ रही है. मस्तक पर भस्म लगाने को धूलि वंदन कहते हैं. इसके कारण धुरेंडी उत्सव बना, जिस दिन हम रंग गुलाल से खेलते हैं.

वसंतोत्सव पर्व 
वसंत ऋतु के आगमन से मौसम सुहावना हो जाता है. इस समय न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा ठंड. अधिकांश सभ्यताओं में आग और पानी से जुड़े त्योहार वसंत का स्वागत करते हैं. होली भी बसंत का ही एक रूप है. पुराने जमाने में इस ऋतु के आगमन को रंग लगाकर मनाया जाता था. इसलिए इसे वसंतोत्सव भी कहा जाता है.

चंद्रमा के प्रकट होने का उत्सव
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को ऋषि कश्यप और देवी अनुसूया को चंद्र देव संतान रुप में प्राप्त हुए थे, इसलिए इस तिथि पर चंद्रमा की विशेष पूजा और अर्घ्य देने का विधान बताया गया है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करने से रोग का नाश होता है. इस समय पर चंद्रमा को जल में दूध मिलाकर अर्घ्य देना चाहिए.

लक्ष्मी-नारायण पूजा 
फाल्गुन पूर्णिमा को समुद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी का अवतरण हुआ था. यही कारण है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जयंती मनाई जाती है. लक्ष्मी जयंती का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है, इस दिन कोई भी काम शुरू किया जा सकता है. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है.

फसल काटने का समय 
फाल्गुन मास की पूर्णिमा का समय किसानों के पर्व रुप में भी प्रचलित रहा है. इस दिन फसलों के पक जाने की खुशी को उत्सव रुप में मनाया जाता था, जिसे आज भी देखा जा सकता है. यह परंपरा आज भी है जिसमें होली के दौरान गेहूं की फसल विशेष रूप से पकती है. इस फसल के पकने की खुशी में होली मनाने की परंपरा है. इसलिए किसान नई फसल का कुछ हिस्सा जलती हुई होली में चढ़ाते हैं और खुशियां मनाते हैं. इसे होली की अग्नि में इसलिए डाला जाता है क्योंकि यह अग्नि के माध्यम से ही भगवान तक पहुंचती है. इसे यज्ञ के समान माना जाता है.


(Disclaimer: प्रकाशित जानकारी सामान्य मान्यताओं और लेखक की निजी जानकारियों व अनुभवों पर आधारित है, Mirzapur Official News Channel इसकी पुष्टि नहीं करता है)