Maa Durga Khoh Temple: सिद्धपीठ दुर्गा खोह मंदिर जहां आज भी माता विराजमान हैं शक्ति रुप में

Siddhpeeth Durga Khoh: दुर्गा खोह शक्ति स्थल आकर भक्त माता के दर्शनों को करते हैं और जीवन के सभी संकटों से मुक्ति भी पाते हैं. दुर्गा खोह मंदिर से जुड़ी लोक कथाओं का एक समृद्ध इतिहास रहा है. माता के चमत्कार हर समय वहां रहने वाले भक्तों एवं दर्शन करने आने वालों के लिए उनकी समृतियों का अंग बन जाते हैं.
नवरात्रों पर लगता है भक्तों का की अस्था का जमावड़ा
दुर्गाखोह मंदिर में नवरात्रों के समय पर विशेष भीड़ देखने को मिलती है. लाखों की संख्या में शृद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं. कथाओं के अनुसार दुर्ग राक्षस के अत्याचारों से देवताओं को मुक्त कराने हेतु देवी ने दुर्गा का अवतार लिया और विध्य पहाडों पर दुर्ग राक्षस का अंत करके देवताओं को अभय प्रदान किया था, तब देवताओं ने माता को दुर्गा रुप से पुकारा था. राजा सुरथ ने देवी भक्ति करते हुए इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया जो दुर्गाखोह नाम से आज भी भक्तों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है.
दुर्गा खोह मंदिर चुनार पौराणिक महत्व
दुर्गा खोह मंदिर (Maa Durga Khoh Temple) भारत के उन चमत्कारीक तीर्थ स्थलों में से एक है जिसका वर्णन हमें पौराणिक धर्म ग्रंथों एवं ऎतिहासिक साख्यों में प्राप्त होता है. इस मंदिर की महिमा का वर्णन शाक्त ग्रंथों में प्राप्त होता है तो वहीं काशी खंड में भी इस धर्म स्थल की आलौकिक छाप प्राप्त होती है.
दुर्गापाठ में भी हमें इस शक्ति स्थल के दर्शन होते हैं. चुनार के पास पहाड़ी गुफा में माता का विग्रह विराजमान हैं. माता के दर्शनों के लिए भक्त दूर दूर से आते हैं और मनोकामनाओं के पुरा होने पर यहां अपनी सिद्धि पूर्ति इत्यादि हेतु हवन एवं पूजा भी करवाते हैं.
भारत की अनोमल धरोहर है ये स्थल
दुर्गा खोह मंदिर केवल धार्मिक रुप से ही विख्यात नहीं है अपितु इस स्थान का ऎतिहासिक एवं पौराणिक महत्व भी बहुत रहा है. इस स्थन का वर्णन हजारों वर्ष के करीब से भी आगे का बताया गया है.
इस मंदिर की छठा एवं इसका स्थान इतना दिव्य होता है की भक्त को यहां आकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है. जीवन में मौजूद परेशानियों का निजात भी भक्तों को मात अके दर्शन के साथ ही मिल जाता है.
लोक कथाओं में इसे देवी दुर्गा के अवतरण लेने ओर माता के यहां विराजमान होने के रुप में देखा जा सकता है. यहां के मंदिर का इतिहास एवं इसकी स्थापत्य कला दोनों की आलौकिक रही है.
विंध्याचल पर्वत की श्रृंखला में मौजूद यह मंदिर साधु संतों की तपो भूमि भी है. आज भी यहां अनेक सिद्ध पुरुषों को देखा जा सकता है. भक्त यहां अपने जीवन में सिद्धियों की प्राप्ति के लिए इस मंदिर के दर्शन एवं माता की भक्ति के लिए अवश्य आते हैं.
(Disclaimer: प्रकाशित जानकारी सामान्य मान्यताओं और लेखक की निजी जानकारियों व अनुभवों पर आधारित है, Mirzapur Official News Channel इसकी पुष्टि नहीं करता है)