मिर्ज़ापुर: कैसे चुनार पर विशेष अनुकंपा कर करती हैं माँ दुर्गा? जानिए रोचक तथ्यों के बारे में

दुर्ग के वध के बाद दुर्गा नाम धारण किया था देवी ने।
 
chunar durga mandir
माँ पार्वती ने दुर्ग की सेना का संहार किया था वह आधुनिक चुनार का दुर्गा खोह है। 


आस्था, डिजिटल डेस्क: काशी खंड में एक कथा के अनुसार दुर्ग नामक एक राक्षस ने ब्रह्मा से अजय होने का वरदान प्राप्त कर लिया, उसके बाद उसने देवताओं और ऋषि-मुनियों को कष्ट देना शुरू कर दिया था। ब्रह्मा के वरदान के कारण दुर्ग से जीत पाना देवताओं के वश में ना था अंततः इस कष्ट से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने महादेव से गुहार लगाई। भगवान शिव ने माता पार्वती से देवताओं के कष्ट करने का आग्रह किया। जिस पर माँ पार्वती ने दैवीय शक्ति से कालरात्रि का आवाहन कर उनसे दुर्ग को लाने को कहा, जब दुर्ग के सैनिकों ने माँ कालरात्रि को पकड़ने की कोशिश की तो वह जलकर राख हो गए।

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इसकी जानकारी प्राप्त होते ही दुर्ग ने अपनी सेना सहित माँ कालरात्रि का पीछा किया माँ कालरात्रि नवदुर्गा और उसकी सेना को मां पार्वती के समीप ले आई जहां माँ पार्वती ने दुर्ग और उसकी सेना का वध कर दिया जिसके बाद से माँ पार्वती को दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है जिस स्थान पर माँ पार्वती ने दुर्ग की सेना का संहार किया था वह आधुनिक चुनार का दुर्गा खोह है। 

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कालांतर में राजा सूरथ ने माँ दुर्गा की मंदिर का निर्माण करा कर वहां मूर्ति स्थापित कराई। मंदिर के समीप स्थित कुंड के बारे में भी कथा रोचक है एक मत के अनुसार कुंड का निर्माण भी द्वापर युग में राजा सूरथ ने ही कराया था। देवी और राक्षस सेना संग्राम के परिणाम स्वरूप इतना खून बहा था कि वहां स्थित प्राकृतिक गड्ढा खून से भर गया राजा सूरथ ने जब गड्ढा देखा तो उन्हें भ्रांति हुई मां दुर्गा को बली अत्यधिक पसंद है। 

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अतः उन्होंने निर्दोष जीव जंतुओं की बलि मां दुर्गा को समर्पित की और उस गड्ढे को कुंड के रूप में निर्मित करवाया राजा सूरथ के मृत्यु के पश्चात उन्हें यमराज से जानकारी प्राप्त हुई की उन्होंने पुण्य किए हैं अतः उन्हें स्वर्ग तो प्राप्त होगा पर और निर्दोष जीव-जंतुओं के वध के लिए उन्हें नाना योनियों में भटकना पड़ेगा यह कथा कहीं ना कहीं सनातन धर्म में दया और जीव हत्या के पाप और भोग के संदर्भ में प्रसारित की गई भी जान पड़ती है। 

राजा सूरथ ने इस स्थान के महत्व को तब जाना था जब उन्हें मालूम चला कि स्वयं भगवान राम ने वन गमन के समय रुक कर इस स्थान पर मां दुर्गा की आराधना की थी। जिसके बाद राजा सूरथ ने पहाड़ी के ऊपर मंदिर निर्माण करवाया। इस स्थान पर मां दुर्गा के साथ माँ काली और भैरव का भी वास माना जाता है। यह स्थान विंध्यांचल की भांति ही तंत्र सिद्धि साधना व पूजा-पाठ के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। 

प्राकृतिक सौंदर्य
चुनार वासियों की माने तो मां दुर्गा आज भी चुनार क्षेत्र की तमाम प्राकृतिक आपदाओं व संकट से रक्षा करती हैं क्षेत्र के लोगों में मां दुर्गा के प्रति अथाह श्रद्धा है प्राकृतिक सुंदरता की गोद में बसा यह मंदिर देशभर के भक्त जनों के आस्था का भी केंद्र हैं। यहां सावन के सोमवार और नवरात्रि में लगने वाली मेले में दूर-दूर से दर्शनार्थी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं समय के साथ यह मंदिर भी रास्तों से जोड़ा जा चुका है।

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वर्षा होने पर पास में एक छोटा झरना बहता है जो कि यहां की सुंदरता को और भी चार चांद लगा देता है। बरसात के अलावा सर्द की गुनगुनी धूप में भी यहां के यात्रा का आनंद उठाया जा सकता है।