Narasimha Dwadashi 2023: आखिर क्यों लेना पड़ा भगवान श्री विष्णु को नरसिंह अवतार जाने इस नरसिंह द्वादशी पर भक्ति की ये अनोखी कथा

नरसिंह द्वादशी के दिन व्रत एवं उपवास के साथ भगवान नरसिंह की कथा का श्रवण भी किया जाता है
 
Narasimha Dwadashi
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भगवान का चतुर्थ अवतार हुआ जब भगवान ने आधे मनुष्य और आधे सिंह का रुप धार कर हिरण्यकशपु का अंत किया


Astro, Digital Desk: फाल्गुन माह में आने वाली द्वादशी तिथि नरसिंह द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. भगवान श्री विष्णु के अवतार रुप में नरसिंह भगवान का पूजन होता है. उत्तर एवं दक्षिण भारत में यह समय विशिष्ट पूजा एवं श्री नरसिंह भगवान के निमित्त किए जाने वाले धार्मिक कृत्यों हेतु मुख्य होता है. नरसिंह जयंती का समय होली से पहले मनाया जाता है. 
 

भगवान श्री विष्णु के इस नरसिंह अवतार की कथा होली से भी बहुत गहरा संबंध रखती है. देश भर में इस दिन भगवान नरसिंह का पूजन होता है तथा कुछ स्थानों पर विशेष झांकिया भी इस समय पर निकाली जाती है. दक्षिण भारत में इस पर्व का स्वरुप काफी अलग देखने को मिलता है. 
 

Narasimha Dwadashi katha नरसिंह द्वादशी व्रत कथा 
नरसिंह द्वादशी के दिन व्रत एवं उपवास के साथ भगवान नरसिंह की कथा का श्रवण भी किया जाता है. श्री विष्णु समस्त सृष्टि के पालनकर्ता हैं, जब भी सृष्टि पर संकट उत्पन्न होता है तब - तब भगवान ने अवतार लेकर सृष्टि को संकट से मुक्त करवाया है तथा धर्म की शुभता एवं मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है. भगवान नरसिंह अवतार भी दैत्यों से सृष्टि को मुक्त करवाने हेतु लिया. भगवान विष्णु ब्रह्मांड के रक्षक हैं, और जीवन की सुरक्षा-शांतिपूर्ण अस्तित्व को स्थापित करने वाले हैं.
 

नरसिंह अवतार पौराणिक आख्यान  
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भगवान का चतुर्थ अवतार हुआ जब भगवान ने आधे मनुष्य और आधे सिंह का रुप धार कर हिरण्यकशपु का अंत किया. भागवत पुराण की कथा अनुसार कश्यप और दिति की संतान रुप में हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दो संताने होती हैं. ये दोनो भाई देवताओं को हर प्रकार से परेशान करने में सदैव तत्पर रहते हैं. जब भगवान ने हिरण्याक्ष का अंत किया तब हिरण्यकशिपु ने श्री विष्णु के प्रति क्रोध एवं बदले की भावना से अपनी शक्ति को बढ़ाया और ब्रह्मा जी की तपस्या द्वारा ऎसा वरदान प्राप्त किया जिसके कारण कोई भी उसका वध न कर सके.
 

इस वरदान अनुसार न कोई देव, असुरों, मनुष्यों या जानवर उसे मार सकेगा, किसी भी शस्त्र द्वारा उसका वध न हो पाएगा, दिन में या रात में उसकी मृत्यु नहीं हो सकेगी, न पृथ्वी पर और न आकाश में उसे कोई मार सकेगा इस प्रकार अमरता स्वरुप वर पाने के पश्चात उसके अत्याचारों में वृद्धि होने लगी और विष्णु पूजा करने वालों को दण्ड देना शुरु कर दिया. इस क्रम में उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भी नहीं छोड़ा. 
 

हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के अनेकों प्रयास किए ओर अंत में जब वह उसे न मार सका तो अपने द्वारा उसका वध करने के लिए तत्पर होता है, हिरण्य ने प्रह्लाद से पूछा कि जिस भगवान के बारे में तुम बात करते हो क्या वो इस स्तंभ में होगा इतना कहते हुए वह क्रोध में आकर उस स्तंभ पर प्रहार करता है किंतु प्रह्लाद की भक्ति के बल द्वारा भगवान आधे मनुष्य और आधे सिंह का रुप धरकर स्तंभ से प्रकट होते हैं और हिरण्यकशिपु को अपने नाखूनों से मार डालते हैं इस प्रकार नरसिंह अवतार द्वारा दैत्य हिरण्यकशिपु का अंत होता है. 

(Disclaimer: प्रकाशित जानकारी सामान्य मान्यताओं और लेखक की निजी जानकारियों व अनुभवों पर आधारित है, Mirzapur Official News Channel इसकी पुष्टि नहीं करता है)