Dev Uthani Ekadashi 2021: देवोत्थान एकादशी के दिन करें इस पौराणिक कथा का पाठ और उठाएं लाभ

Digital Desk: देवोत्थान एकादशी को जेठवन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक माह के इस एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन माता तुलसी और भगवान विष्णु के शिलाहरी रूप का विवाह कराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पूजा करने से कन्यादान के फल की प्राप्ति होती है। देवोत्थान एकादशी के दिन सभी सुहागन महिलाएं तुलसी विवाह का आयोजन करती है एवं पूजा अर्चना करती हैं। साथ ही वह पौराणिक कथा का पाठ करती है। माना जाता है ऐसी स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते हैं आगे कि वह कौन सी कथा है जिसके पाठ से इतना लाभ मिलता है।
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा- शिव पुराण की कथा के मुताबिक़, एक बार भगवान शिव के अलौकिक क्रोध से तेज प्रकट हुआ। उस तेज के समुद्र में जाने से एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। वही तेजस्वी दैत्य बालक आगे चलकर दैत्यराज जलंधर कहलाया। उसकी राजधानी जालंधर कहलाती थी। वक़्त आने पर जालंधर का विवाह कालनेमी की पुत्री वृंदा से हुआ, वृंदा बहुत ही पतिव्रता स्त्री थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जलंधर ने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया था। लेकिन उसे ये ज्ञान और पराक्रम रास न आया। एक दिन वह अपनी शक्ति के नशे में चूर हो कर माता पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत जा पहुंचा।
इससे क्रोधित हो कर भगवान शंकर ने उसे मारने का प्रयास किया। लेकिन वह भगवान शिव का ही पुत्र था, इस कारण से वह भी शिव के समान ही शक्तिशाली था। उसके पास वृंदा के पतिव्रत की शक्ति भी थी। इस कारण से भगवान शिव भी उसका वध नहीं कर पा रहे थे। तब पार्वती जी ने सारी कहानी विष्णु जी को बतलाई। यह सब सुन कर विष्णु जी ने बताया कि, जब तक वृंदा का पतिव्रत भंग नहीं होगा तब तक जलंधर को नहीं मारा जा सकता है।
भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली थी। ऋषि को देखते ही वृंदा ने महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जलंधर के बारे में पूछा। तब ऋषि रूपी विष्णु जी ने अपनी शक्तियों से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जलंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति को मृत देखकर वृंदा मूर्छित हो गई। जब उसे होश आया तो उसने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की विनती की।
भगवान विष्णु ने अपनी शक्तियों से दोबारा जलंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया और साथ ही स्वयं भी उसके शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा इस छल से पूरी तरह से अज्ञात थी। अपने पति को दोबारा पा कर वृंदा जलंधर रुपी भगवान विष्णु के साथ पतिव्रता का व्यवहार करने लगी। ऐसा करते ही उसका सतीत्व भंग हो गया और वृंदा का पति जलंधर युद्ध में हार कर मारा गया।
भगवान विष्णु के छल का ज्ञात होने पर वृंदा ने उन्हें ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। वृंदा के श्राप के प्रभाव से विष्णु जी शालिग्राम रूप में पत्थर बन गये। सृष्टि के कर्ता धर्ता का पत्थर बन जाने से सृष्टि में असंतुलन ले आया। यह देखकर सभी देवी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दे। वृंदा ने विष्णु जी को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहीं से तुलसी का पौधा उग आया।
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि, "तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी।" बस तभी से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी के दिन को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है और माता तुलसी का विवाह विष्णु जी से कराया जाता है।
Source: UP Kiran