Sant Tukaram Jayanti: भक्ति धारा में अग्रीण स्थान रहा है संत तुकाराम का

आस्था, Digital Desk: संत तुकाराम भारत के सत्रहवीं शताब्दी के मराठी संत कवि थे, जो महाराष्ट्र के भक्ति आंदोलन में अग्रीण स्थान रखते हैं. तुकाराम वैष्णववाद में भगवान विठ्ठल जिन्हें भगवान कृष्ण का एक रूप माना गया है. उनके अनन्य भक्त थे. संत तुकाराम जी ने अपना संपूर्ण जीवन भक्ति कौ लौ को जगाने में बिताया. उनके पदों में भक्ति के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं. आज भी इनकी रचनाएं जीवन में प्रासांगिक रुप में स्थान पाती हैं तथा समाज के कल्याण की राह का मार्ग प्रशस्त करने वाली हैं.
संत तुकाराम का जीवन एवं भक्त मार्ग
संत तुकाराम का जन्म देहू में हुआ था, जो महाराष्ट्र के आधुनिक पुणे शहर के बहुत करीब है. उनके पिता,एक छोटे व्यापारी थे. उनका परिवार मराठा समुदाय के सफल अनाज विक्रेता और किसान के रुप में जाना जाता था. पिता स्वभाव से पवित्र और धर्मार्थ थे. तुकाराम जी का विवाह पंद्रह वर्ष की उम्र में हुआ था, लेकिन 1629 के अकाल में उन्होंने अपनी पत्नी रखुमबाई और एक पुत्र को खो देते हैं.
उनकी दूसरी पत्नी, जीजाबाई थी. अपनी पहली पत्नी और पुत्र की मृत्यु के बाद, तुकाराम की गृहस्थ जीवन में रुचि खोने लगी थी, किंतु अपने परिवार को पूरी तरह नहीं छोड़ा, कहा जाता है कि उनके पिता की मृत्यु के बाद, तुकाराम ने गरीबों को दिए गए कर्जों को माफ कर दिया.

तुकाराम सांसारिक तौर-तरीकों से भोले थे, और अक्सर दूसरों के धोखे के भी शिकार होते हैं. किंतु अपनी भक्ति से विमुख नहीं हुए. तुकाराम ने अपना अधिकांश समय प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर, नामदेव और एकनाथ के कार्यों के चिंतन और अध्ययन में बिताया. कहा जाता है कि उन्हें स्वप्न में गुरु, राघव चैतन्य से आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिला था. एक अन्य कथन अनुसार स्वयं भगवान विठ्ठल ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए थे और तुकाराम को भक्ति की ओर रचनाएं लिखने की प्रेरणा प्रदान की थी.
संत तुकाराम की शिक्षाओं ने बदला समाज का स्वरुप
समाज में चल रहे अंधविश्वासों एवं कुरुतियों को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपनी रचनाओं को आधार बनाया. भक्ति पर उन्होंने कई रचनाएं निर्मित की.अभंग कविता का श्रेय इन पर ही जाता है और अपने साहित्य में लोक जीवन को भक्ति से जोडने का प्रयास किया.