Yagyavalakya Jayanti : महर्षि याज्ञवल्क्य जयंती जाने इसका महत्व और वेदों के निर्माण की गाथा

Astro, Digital Desk: शुक्ल यजुर्वेद संहिता, शतपथ ब्राह्मण जैसे ग्रंथों से जन जीवन को अवगत कराने वाले महर्षि याज्ञवल्क्य विद्वान और परम ज्ञानी थे. महर्षि याज्ञवल्क्य का उल्लेख पुराणों में काफी विस्तार पुर्वक प्राप्त होता है. उनके द्वारा रचे गए ग्रंथों का ज्ञान अत्यंत ही अमूल्य रहा है. याज्ञवल्क्य को ब्रह्माजी के अवतार रुप में भी पूजा जाता है. तथा इन्हें ब्रह्मर्षि का स्थान भी प्राप्त है. भागवत में एक कथा में याज्ञवल्क्य को देवरात पुत्र रुप में भी संबोधित किया गया है.
ऋषि याज्ञवल्क्य और सूर्य उपासना
ऋषि याज्ञवल्क्य ने भगवान सूर्य की उपासना द्वारा ज्ञान को प्राप्त किया था. यह उपासना उन्होंने अपने ज्ञान को पुनर्जीवित करने हेतु की थी. याज्ञवल्क्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे ओर उनके द्वारा उन्होंने अनेक प्रकार के ज्ञान का संचयय भी किया. किंतु गुरु शिष्य के मध्य विवाद के चलते गुरु ने अपना समस्य ज्ञान उनसे वापिस मांग लिया, याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु को वह समस्त ज्ञान दे दिया जिसे उनसे उन्होंने ग्रहण किया था. माना जाता है कि उस ज्ञान को वैशम्पायन के अन्य शिष्यों ने तीतर बन कर चुग लिया था जिसके चलते वह तैतरिये उपनिषद के रुप में सामने आया.
गुरु को समस्त ज्ञान लौटाकर याज्ञवल्क्य ज्ञान से विहिन हो गए तब उन्होंने सुर्य देव की कठोर उपासना की. सूर्य देव उनकी भक्ति से प्रसन्न हर उन्हें आशीर्वाद देते हैं और तब याज्ञवल्क्य जी ने सूर्य की कृपा द्वारा प्रत्यक्ष रुप से ज्ञान की प्राप्ति होती है. महर्षि याज्ञवल्क्य जी को सूर्य देव से ज्ञान प्राप्त होने के उपरांत यजुर्वेद का मिर्माण संभव हो पाया है.
महर्षि याज्ञवल्क्य ने दिया शुक्ल यजुर्वेद का ज्ञान
महर्षि याज्ञवल्क्य जी को योगीश्वर के रुप में भी जाना जाता रहा है. ऋषि याज्ञवल्क्य जी को मंत्रों के दृष्टा के रुप में स्थान प्राप्त था. सभी आचार्यों में ऋषि याज्ञवल्क्य का स्थान सर्वप्रमुख रहा है. याज्ञवल्क्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे किंतु अपने गुरु से भी आगे निकल कर इन्होंने वेदों में अपने ज्ञान का प्रकाश समाहित किया था. इनकी दो पत्नियां थी जो परम साधवी थीं मैत्रेयी और गार्गी इनकी पत्नियां थी.
सूर्य देव की कृपा स्वरुप ही याज्ञवल्क्य शुक्ल यजुर्वेद, वाजसनेयी संहिता के आचार्य हुए. इन्हें सूर्य देव से दिन के मध्य समय ज्ञान की प्राप्ति होती है जिसके चलते माध्यन्दिन शाखा का उदय होता है और शुक्ल यजुर्वेद का निर्माण इन्हें द्वारा प्राप्त होता है.
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