पुण्यतिथि विशेष: महादेवी वर्मा ने दी थी हिंदी साहित्य को एक नई पहचान, अपने लेखन से स्त्री पीड़ा का किया वर्णन

उत्तर प्रदेश, डिजिटल डेस्क: महादेवी वर्मा ने अपने साहित्य के जरिए फ्रीज सशक्तिकरण एवं स्त्रियों को शिक्षा देने जैसे अहम मुद्दे को प्रोत्साहित किया। महादेवी वर्मा ने साहित्य के जरिए समाज में चेतना जागरूक करने हेतु एवं सामाजिक दायित्व निभाया। आजादी के बाद भी महादेवी वर्मा जी ने स्त्रियों की सामाजिक दशा को झकझोरा।
महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च 1907 फर्रुखाबाद में हुआ था और उनकी मृत्यु आज ही के दिन यानी 11 सितंबर 1987 इलाहाबाद में हुई थी। महादेवी वर्मा ने अपने जीवन में गुलाम भारत एवं आजादी का भारत दोनों देखा और इसी से प्रेरित होकर उन्होंने आजाद भारत एवं गुलाम भारत में महिलाओं के ऊपर जो उत्पीड़न होता है और महिलाओं को आगे बढ़ाने हेतु, अपनी कविताओं और कहानियों से मुद्दों को उठाया। व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो महादेवी वर्मा जी की शादी डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से हुई थी। लेकिन उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन अकेले बिताने का निर्णय लिया था।
हिन्दी साहित्य में अतुलनीय योगदान देने वाली महान साहित्यकार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और पदमभूषण से अलंकृत "साहित्य साम्राज्ञी" महादेवी वर्मा जी की पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन । pic.twitter.com/2mAr1BBJau
— Sambit Patra (@sambitswaraj) September 11, 2021
महादेवी वर्मा ने 1930 में निहार नाम की कविता से अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत की थी। जिसके हेतु उन्हें काफी प्रशंसा मिली उनकी आखिरी कविता "अग्नि रेखा" थी और उनकी आखिरी प्रोस "हिमालय" था। महादेवी वर्मा के "यामा" और "मेरा परिवार" जैसे लेख को काफी प्रशंसा मिली थी और आज भी लोगों के बीच प्रसिद्ध है।
महादेवी वर्मा को 1956 में पद्मभूषण जैसे अवार्ड से सम्मानित किया गया और 1988 में पद्म विभूषण से।