Karnataka High Court का बयान, "Islam में Muslim निकाह एक Contract है, Hindu विवाह के तरह संस्कार नहीं", पढ़िए पूरा मामला
Karnataka High Court ने माना कि Muslim Marriage निकाह, विघटन से उत्पन्न होने वाले कुछ अधिकार और दायित्व को पीछे नहीं निकलती है।

Karnataka High Court ने कहाँ, "Muslim Marriage एक Contract है"
Bengaluru, Digital Desk: Karnataka High Court ने कहा कि, Islam धर्म में Marriage कई महीनों में एक Contract की तरह होती है। यह Hindu धर्म की तरह विवाह संस्कार नहीं होता। शादी टूटने पर कुछ अधिकार और दायित्व से नहीं पीछे नहीं हटा जा सकता।
Bengaluru High Court ने भुवनेश्वरी नगर में रहने वाले एक 50 साल के एजाज-उर रहमान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। रहमान ने हाईकोर्ट से Family Court में 12 अगस्त को दिए गए आदेश को रद्द करने की Appeal की गुजारिश की थी।
रहमान ने अपनी पत्नी Saira Bano से शादी 25 नवंबर 1991 में की थी। लेकिन शादी के कुछ महीने बाद ही ₹5000 की मेहर(Mehar) पर उसने अपनी पत्नी सायरा बानो को तलाक दे दिया था। कुछ दिन बाद रहमान ने दूसरी महिला से शादी की और एक बच्चे का पिता भी बन गया। सायरा बानो ने 24 अगस्त 2002 को भरण-पोषण के लिए हरजाने(Maintenance) की मांग करते हुए केस दाखिल किया।
Family Court ने रहमान को हर महीने सायरा बानो को भरण-पोषण के लिए लगभग ₹3000 महीने देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा था कि सायरा हर महीने पैसे पाने की हकदार है। उसकी दोबारा शादी होने या मौत होने तक उसे ₹3000 की रकम हर महीने मिलनी चाहिए।
रहमान की याचिका पर सुनवाई करते हुए Justice Krishna S Dixit ने उस पर ₹25000 का जुर्माना भी लगा दिया। Judge साहब ने कहा कि Islam धर्म में शादी संस्कार नहीं है, लेकिन तलाक होने पर दायित्वों से पीछे नहीं हटा जा सकता। उन्होंने कहा कि तलाक के बाद अपने कर्तव्य को भुला नहीं जा सकता। इसीलिए बेसहारा पत्नी को तलाक देने के बाद गुजारा भत्ता देना जरूरी है एवं कानूनी भी।
कोर्ट ने Quran की आयतों का उदाहरण देते हुए कहा कि मुस्लिम व्यक्ति(Muslim) को अपनी बेसहारा पूर्व पत्नी को नैतिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए Maintenance देना होगा।
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