Mother Teresa: मदर टेरेसा ने बनाई थी भारत को अपनी कर्मभूमि 19 साल की उम्र में ही आ गई थी भारत

मदर टेरेसा 19 साल की उम्र में भारत आ गई थी और उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव सेवा हेतु भारत को समर्पित कर दिया.
 
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नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क: आजकल दुनिया भर में अशांति फैली हुई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा एवं आतंकवाद में बढ़ोतरी। ऐसे में मदर टेरेसा को उनके जन्मदिन पर याद करना जरूरी हो जाता है। 1979 नोबेल पुरस्कार पाने वाली मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीबो की सेवा में लगा दिया। मदर टेरेसा 1929 में भारत आई थी और अपने जीवन के 68 साल उन्होंने भारत में रहकर ही लोगों की सेवा की। पूरे विश्व द्वारा मदर टेरेसा को सम्मान मिला, तो कहीं उनके आलोचकों द्वारा भी उनकी खूब निंदा भी की गई। लेकिन उन्होंने हमेशा खुद को मानव सेवा में समर्पित कर दिया।

मदर टेरेसा ने 12 साल की उम्र में यह फैसला लिया कि वे अपना जीवन धर्म को समर्पित कर देंगी। भारत आने के अपने इरादे को मजबूत करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी सीखें।

भारत आने के बाद उन्होंने काफी वक्त दार्जिलिंग में बिताया। जहां उन्होंने बंगाली सीखें। बताया जाता है कि उनका नाम एक एकनेस था। लेकिन उन्होंने अपना नाम टेरेसा भारत में आने के बाद चुना। 

मदर टेरेसा ने लगभग कोलकाता के एक कान्वेंट स्कूल में 20 साल तक पढ़ाया और 1944 में वह स्कूल की हेडमिस्ट्रेस नियुक्त की गई। मदर टेरेसा को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन वे कलकत्ता के आसपास की गरीबी से बहुत व्यथित हो जाया करती थी। 1946 में कौमी हिंसा से पैदा हुए बवाल से वह बहुत दुखी हुई। इसके दौरान जब वे डार्जीलिंग जा रही थी, तब उन्हें उनकी आत्मा की आवाज ने झकझोर कर रख दिया। जिसे उन्होंने ईश्वर का आदेश माना और तभी उन्होंने गरीबों की सेवा करने का फैसला कर लिया।

आज हमारे देश के नेताओं को गरीबों से घिन आती है, वह उनकी परेशानी और मजबूरियों को समझना नहीं चाहते हैं। वही मदर टेरेसा गरीबों के बीच जाकर उनकी सेवा करती थी। 

माना जाता है कि मदर टेरेसा के पास  ज्यादा पैसे नहीं थे और उनके पास भी केवल दो साड़ी थी। लेकिन उनके इस मजबूत इरादे को कोई तोड़ नहीं पाया और फिर लोग मिलते गए कारवां बनता गया। उन्होंने लोगों की सेवा का अभियान शुरू कर दिया, इसके बाद सरकारी अधिकारी से लेकर चर्च तक का ध्यान उनपर गया और उनके कार्य में उन्हें मदद मिलती गयी।

मदर टेरेसा के इस नेक काम की गूंज विदेश तक में गूंजी और 1979 में उन्होंने उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

1997 में कोलकाता में उनका देहांत हो गया था।