भारतीय सेना के हर योद्धा की गाथा अद्वितीय, असली हीरो की कहानी जिन पर बनती हैं फ़िल्में

जानिए अनसुनी कहानियां कारगिल शहीदों की अद्वितीय गाथा की
 
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कैप्टन विक्रम बत्रा का शौर्य जिस आसमान में चमक रहा है वहां उनके ही जैसे और भी सूरज हैं मौजूद

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क : फिल्में सबसे अच्छा माध्यम होती हैं आम आदमी को किसी भी घटनाक्रम से जोड़ने के लिए ऐसे में फिल्म शेरशाह ने आम आदमी का जुड़ाव कारगिल युद्ध से और विक्रम बत्रा के शौर्य से और भी मजबूत कर दिया पर सिर्फ विक्रम बत्रा ही नहीं उस कारगिल युद्ध में और भी कई ऐसे नायक हैं जो अभी भी पाकिस्तान के बुरे सपने में आते होंगे, कैप्टन विक्रम बत्रा के अलावा कारगिल युद्ध में 3 अन्य जांबाज़ों को परमवीर चक्र से नवाज़ा गया। आइए जानते हैं उनकी शौर्य गाथा जो आपको एक हिंदुस्तानी होने पर गर्वान्वित कर देगी

 


 

कैप्टन मनोज पांडेय:
 



1/11 गोरखा रेजीमेंट के मनोज पांडेय की कहानी मैं इतना रोमांच है कि किसी कल्पनिक चलचित्र में भी उसे ढ़ालना मुश्किल हो जाता है। एनडीए के इंटरव्यू में जब कैप्टन मनोज पांडे जब पूछा गया कि वह फौज में क्यों आना चाहते हैं तो उनका जवाब था परमवीर चक्र जीतने के लिए, उस वक्त यह जवाब एक अति उत्साही युवा की महज आकांक्षा महसूस हुई होगी पर कैप्टन पांडेय ने अपने जीवन में उसे सच करके दिखाया। कुकरथांग व जुबारटॉप फतह कर लौटी मनोज की पलटन को लक्ष्य खालूबार मिला, खालूबार सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था यहां से पाकिस्तान की सप्लाई रोकी जा सकती थी, पर यह बिल्कुल आसान न था प्राप्त सूचना के अनुसार पाकिस्तानी वहां चार बंकर बना कर बैठे थे और सामने से आते हुए फौज पर भारी गोलीबारी करते थे खालूबार जीतना बेहद मुश्किल हो गया था। मिशन के इंचार्ज रहे कर्नल ललित राय बताते हैं कि उन्होंने कैप्टन मनोज पांडेय को एक टुकड़ी लेकर रात के वक्त उन बंकरो को ध्वस्त करने के लिए भेजा। मनोज ऊपर जाकर बताते हैं कि ऊपर चार नहीं कुल 6 बंकर हैं और वह बेझिझक बंकरो पे कब्जा करने आगे बढ़ने लगे। इनमें से तीन बंकर मनोज ने बेहद बहादुरी से जीत लिया। वहीं चौथे बंकर पर हमला करते वक्त कैप्टन मनोज पांडेय घायल हो गए उनकी पलटन ने उन्हें वापस लौट जाने को कहा जिस पर उनका जवाब था मैं खालूबार फतह किए बिन वापस न जाऊंगा क्योंकि यह काम मुझे ही सौंपा गया था। चौथे बंकर को ध्वस्त करने के लिए वह खड़े हुए और ग्रेनेड बंकर की ओर उछाला तभी उसी बंकर से मशीन गन की भारी फायरिंग हुई। जो सीधे मनोज के सिर पर जा लगी कैप्टन मनोज पांडे शहीद शहीद हो गए। यह वीरता की ही देन है उनके अधिकारी कर्नल ललित राय को वीर चकर् से नवाज़ा गया वहीं कैप्टन मनोज मनोज पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला। कैप्टन मनोज पांडेय का प्रसिद्ध कथन था "यदि मौत मेरे खून को साबित होने से पहले आ जाती है तो मैं मौत को भी मार दूंगा।"


योगेन्द्र यादव: 
 

Yogendra Yadav


18 ग्रेनेडियर से संबंध रखने वाले योगेंद्र यादव उस पलटन के हिस्सा नहीं थे जिसने टाइगर हिल पर कब्जा किया था पर टाइगर हिल जीतने में परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव का अद्वितीय योगदान है 5 जुलाई 1999 को अपने 25 साथियों के साथ योगेंद्र यादव जब टाइगर हिल पर पहुंचे तो नेपाली गोलीबारी का सामना करना पड़ा जिसके चलते उनमें से 18 साथी पीछे रह गए और 7 साथियों ने मोर्चा संभाला उन 7 जवानों ने पाकिस्तानी बारिश हो रही गोलीबारी का डटकर सामना किया गोलीबारी बंद होने पर कुछ पाकिस्तानी सैनिक यह देखने आए भारतीय सेना के जवान अभी जीवित है या मर गए इस पर घात लगाकर बैठे उन 7 सिपाहियों ने पाकिस्तानी सेना की 35 सिपाहियों पर हमला कर दिया जिसमें कई पाकिस्तानी सिपाही मारे गए।पर बचे हुए पाकिस्तानी जवान जवानों ने ऊपर जाकर सूचना देना कि नीचे सिर्फ हिंदुस्तानी सिपाही हैं जिसके बाद उन बंद करो से पूरी ताकत से गोलीबारी की गई और योगेंद्र यादव के सभी साथी मारे गए स्वयं योगेंद्र यादव को 15 गोलियां लगी वह बेसुध अपने मौत का इंतजार कर रहे थे कि उन्हें पाकिस्तानी खेमे से भारत के एमएमजी पोस्ट पर हमला करने की योजना का पाकिस्तानी रेडियो से पता चला योगेंद्र यादव बताते हैं इस सूचना का भारतीय सैन्य अधिकारियों तक पहुंचना उनके जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था वो पास में बह रहे नाले में आज मेरे हाल में कूद गए और धारा के साथ बैठे हुए नीचे आए उन्होंने पाकिस्तानी रेडियो से प्राप्त गुप्त सूचना को भारतीय सेना अधिकारियों को दिया जिसके बदौलत जब भारतीय सेना ने पोस्ट पर हमला किया गया तो बड़े ही आसानी से भारतीय पलटन पाकिस्तानी मंसूबे विफल कर दिए अदम्य वीरता के लिए योगेंद्र यादव को परमवीर चक्र से नवाजा गया। 
 

राइफल मैन संजय कुमार :
 

Sanjay kumar


राइफल मैंन संजय कुमार का नाम पॉइंट 4875 और फ्लैट टॉप विजय के लिए लिया जाता है। राइफल मैंन संजय कुमार ने अपने साथियों के साथ पहले पॉइंट 4875 पर चालाकी से कब्जा किया और फिर बाद में महज 5 साथियों के साथ मिलकर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण फ्लैट टॉप पर भी कब्ज़ा दिलाया। संजय कुमार अपने साथियों के साथ कवर फायर के आड़ में दुश्मनों के बंकर के बेहद करीब पहुँच गए उन्होंने अपने साथी से बँकर में ग्रेनेड फेंकने को कहा और उसके तुरंत बाद ही दुश्मन खेमे में जाकर दुश्मनों से मशीनगन छिन ली। उसी गन से फायर कर के उन्होंने पहले पॉइंट 4875 पर कब्जा किया। फिर फ्लैट टॉप के मोर्चे पर 6 साथियों से आगे बढ़े उन्होंने चट्टान के आड़े पाकिस्तानी सेना पर भयानक गोलीबारी पाकिस्तानी सेना की हौसले मस्त हो गए हैं संख्या बल में अधिक होने के बाबजूद पाकिस्तानी सेना के जवान अपनी पोजीशन छोड़ कर भाग गया राइफलमैन संजय कुमार और उनके साथियों ने फ्लैट टॉप पॉइंट पर कब्जा कर ले उनकी वीरता के लिए उन्हें परमवीर पुरस्कार से नवाजा गया।
 

भारतीय सेना में कई और ऐसी अनसुनी वीर गाथाएं हैं जिन्हें कहा जाना बाक़ी है।