Mata Vindhyavasini: भक्तों की सभी मुरादें पूरी करती है माँ विंध्यवासिनी
माँ विंध्यवासिनी के धाम में देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रतिदिन लाखों की संख्या में भक्त गण आते हैं और प्रसन्न होकर नई ऊर्जा के साथ जाते हैं।

मिर्ज़ापुर, Digital Desk: मिर्ज़ापुर (Mirzapur) पृथ्वी के केंद्र बिंदु विंध्याचल (Vindhyachal) पर्वत पर विराजमान जगत जननी माता विंध्यवासिनी को बिन्दुवासिनी एवं वन देवी के नाम से भी बुलाया जाता है। विंध्य पर्वत पर सशरीर विराजमान माता अपने तीन स्वरूप होते है:
• माता लक्ष्मी (विंध्यवासिनी ),
• माता काली (काली खोह )
• माता सरस्वती (अष्टभुजा )
यह रूप में आदिकाल से भक्तो का कल्याण करने के लिए विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी गंगा के पावन संगम पर आदिकाल से विराजमान है। माँ विंध्यवासिनी के धाम में देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रतिदिन लाखों की संख्या में भक्त गण आते हैं और प्रसन्न होकर नई ऊर्जा के साथ जाते हैं।
विस्तार:
आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की महिमा अपरम्पार है, प्रतिदिन माँ के चार रूप में होने वाली आरती में मनुष्य और देवता भी हाजिरी लगाते है ।आदिशक्ति के गुणों का बखान मार्कण्डेय पुराण में देवताओं ने भी किया है |
मिर्ज़ापुर (Mirzapur News) में भक्तो के कल्याण के लिए सिद्धपीठ विन्ध्याचल में सशरीर निवास करने वाली माता विंध्यवासिनी का धाम मणिद्वीप के नाम से विख्यात मानी जाती है | माँ के धाम में दर्शन पूजन करने से भक्तो की सारी मनोकामनाए पूरी होती है | विंध्य पर्वत की विशाल श्रृंखला विन्ध्याचल में ही पतित पावनी गंगा को स्पर्श करती है | ऐशान्य कोण को धर्म का स्थान माना जाता है । धर्म स्थल पर विराजमान माता विंध्यवासिनी अपने चार रूपों में चारो दिशाओं की ओर मुंह करके अपने चार रूपों में भक्तो का कल्याण कर रही है |
आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान है। जबकि देश के अन्य शक्तिपीठो में सती के शरीर का एक - एक अंग गिरा है | देश के तमाम स्थानों पर शक्तिपीठ है तो विन्ध्याचल सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है | यहा माता अपने चार रूप महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती एवं माँ तारा के रूपों में श्रीयंत्र पर विराजमान होकर दर्शन देती है |
देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान है। जिनकी स्थापना भगवान राम ने किया था।
• जो विन्ध्य क्षेत्र को शिव - शक्ति मय बनाकर भक्तो का कल्याण करती है | देश के हर कोने - कोने से आने वाले भक्त माता रानी के दर पर मत्था टेकते है | ऋषियों मुनियों के लिए सिद्धपीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है | देवासुर संग्राम के दौरान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने माता के दरबार में तपस्या कर असुरों पर विजय प्राप्त करने के साथ ही जगत के कल्याण का वरदान माँगा था | माँ की कृपा से देवों की जीत और दानवों की पराजय हुई ।
माता के धाम में देश के कोने - कोने से आने वाले भक्त आदिशक्ति की पूजा अर्चना कर जो मांगते है वह सब देवी उन्हें प्रदान करती है। नवरात्र में भक्तों की तादात लाखों में होती है। माँ की कृपा पाने के लिए भक्तों का ताँता दिन रात लगा रहता है । कहा जाता है कि जो करे मंगला कभी न रहे कंगला । भोर की मंगला आरती का दर्शन करने मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामना पूरी हो जाती हैं ।