Dev Diwali 2021: देव दीपावली तिथि, मुहूर्त, कथा और महत्त्व सबकुछ जानिए यहां

दीपावली के बारे में तो हम सभी जानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी देव दीपावली के बारे में सुना है?

 
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देव दीपावली का पर्व मुख्य रूप से शिव की नगरी काशी और राम लला की भूमि अयोध्या में मनाया जाता है।  इस दिन भक्तगण गंगा मैय्या में डुबकी लगते हैं, शाम के वक़्त घर-मंदिर और घाटों पे तेल के दिए प्रज्वलित किये जाते हैं। 


Dev Deepawali 2021:  दीपावली के बारे में तो हम सभी जानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी देव दीपावली के बारे में सुना है ! अगर नहीं तो घबराइए नहीं, आज यहां हम आपको देव दीपावली के पर्व के बारे में सब कुछ बताएंगे। कब मनाया जाता, कैसे मनाया जाता है, क्या है पूजन की विधि, महत्त्व, शुभ मुहूर्त यह सब जानने के लिए आगे बनें रहे हमारे साथ और नीचे स्क्रॉल करें।   

देव दीपावली का पर्व हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही आता है।  इस उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से होती है और पांच दिन बाद यानी कि कार्तिक पूर्णिमा की रात को समापन होता है। इस पर्व का नाम देव दीपावली इसलिए रखा गया है क्योंकि इस दिन समस्त देवी देवताओं ने दीपावली मनाई थी। इस दिन देवी देवताओं ने असुरों पर भगवान शिव की जीत का जश्न मनाया था। मिर्ज़ापुर में इस त्योहार को हमेशा ही ज़ोरों शोरों से मनाया जाता है। इस साल अभी से ही चुनार एवं मिर्जापुर के घाटों की सफाई का आलम शुरू हो गया है। ख़ास तौर से चुनार में घाटों पर बच्चों को लुभाने के लिए सेल्फी पॉइंट्स तैयार किये जा रहें हैं। साथ ही दीवारों को पारम्परिक चित्रों से रंगा जा रहा है। मिर्ज़ापुर के सभी घाटों पर भी तैयारी के दृश्य नज़र आने शुरू हो गए हैं।  

देव दीपावली 2021- तिथि 
इस वर्ष 18 नवंबर के दिन देव दीपावली को मनाई जाएगी। पूर्णिमा की तिथि 18 नवंबर को दोपहर 12:00 बजे से 19 नवंबर को दोपहर 2:26 बजे तक है। 

देव दीपावली 2021- पूजा शुभ मुहूर्त 
देव दीपावली पूजा प्रदोष काल के दौरान की जाती है। पूजा का मुहूर्त 18 नवम्बर को  शाम 5:09 बजे से शाम 7:47 बजे तक है।

देव दीपावली- महत्त्व 
तारकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष। तीनों ने गहन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से आशीर्वाद मांगा था। इसलिए, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, जैसे ही भगवान ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए, तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन यह आशीर्वाद ब्रह्मांड के नियमों के खिलाफ था, इसलिए ब्रह्मा जी ने इसे देने से इनकार कर दिया। लेकिन वरदान तो देना ही था, इसलिए ब्रह्मा जी ने उन्हें एक वरदान दिया और कहा कि जब तक कोई उन तीनों को एक तीर से नहीं मारेगा, तब तक उनका अंत नहीं होगा। भगवान ब्रह्मा के इस आशीर्वाद को प्राप्त करने के तुरंत बाद, तीनों भाइयों ने समस्त लोक में खूब विनाश किया और हाहाकार मचा दिया। वह तीनों ही  मानव सभ्यता के लिए भी खतरा साबित हुए।

इसलिए, भगवान शिव ने त्रिपुरारी या त्रिपुरांतक का अवतार लिया और एक ही तीर से तीनों राक्षसों को मार डाला। इस प्रकार, त्रिपुरासुर को नष्ट करके भगवान शिव ने पुनः इस समस्त संसार में शांति की स्थापना की। देव दीपावली का पर्व मुख्य रूप से शिव की नगरी काशी और राम लला की भूमि अयोध्या में मनाया जाता है।  इस दिन भक्तगण गंगा मैय्या में डुबकी लगते हैं।  शाम के वक़्त घर, मंदिर और घाटों पे तेल के दिए प्रज्वलित किये जाते हैं। 

Source: Timesnow नवभारत